विवरण
भगवान शिव, त्रिदेवों में संहारकर्ता और कल्याणकारी देवता के रूप में पूजित हैं। वे योगेश्वर, महादेव और नटराज के रूप में जाने जाते हैं। शिव का स्वरूप सादगी और तपस्या से युक्त है—जटाजूट, गंगा, चंद्रमा, गले में सर्प और भस्म से विभूषित तन उनके विरक्त जीवन का प्रतीक है। वे कैलाश पर्वत पर वास करते हैं और माता पार्वती के पति तथा गणेश और कार्तिकेय के पिता माने जाते हैं। शिव का दर्शन ‘अहिंसा, संयम और भक्ति’ पर आधारित है। वे भक्तों को सरलता से प्रसन्न करने वाले देवता हैं, जिन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। केवल एक लोटा जल और बेलपत्र अर्पित करने से ही वे प्रसन्न हो जाते हैं। पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन के समय उन्होंने हलाहल विष को पीकर संसार की रक्षा की, जिसके कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा। नटराज रूप में शिव ब्रह्मांडीय नृत्य के अधिपति हैं, जो सृष्टि, पालन और संहार का प्रतीक है। वे योगियों के आराध्य हैं और ‘महायोगी’ के रूप में समाधि में लीन रहते हैं। शैव परंपरा में वे ब्रह्मज्ञान, वैराग्य और मोक्ष के मार्गदर्शक हैं। शिवरात्रि उनका प्रमुख पर्व है, जिसे माघ या फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भक्त उपवास करते हैं और रात्रि जागरण के साथ शिवलिंग का पूजन करते हैं। इसके अतिरिक्त सावन मास और कावड़ यात्रा भी शिव भक्ति के विशेष अवसर हैं। काशी विश्वनाथ, केदारनाथ और अमरनाथ जैसे तीर्थ स्थान शिव के प्रमुख धाम हैं। वेदों, पुराणों और उपनिषदों में शिव का वर्णन व्यापक रूप से मिलता है। वे केवल संहारक नहीं, बल्कि करुणामयी, रक्षक और मोक्षदाता भी हैं। भक्तजन उन्हें ‘महादेव’ के रूप में स्मरण करते हैं और मानते हैं कि उनकी शरण में जाने से जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है।