विवरण
राधा, श्रीकृष्ण की परम प्रिय और ब्रज की अधीश्वरी मानी जाती हैं। वे ह्लादिनी शक्ति—भक्ति और दिव्य प्रेम की सर्वोच्च सत्ता—के रूप में पूजित होती हैं। राधा का जीवन और स्वरूप केवल ऐतिहासिक या पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि वे अनन्त करुणा, समर्पण और निर्मल प्रेम का जीवित प्रतीक मानी जाती हैं। बरसाना, उनके जन्मस्थल के रूप में विश्वभर में विख्यात है और आज भी भक्त उनके चरणों में प्रेम और शांति की तलाश में आते हैं. राधा-कृष्ण का प्रेम शुद्ध भक्ति का सर्वोच्च आदर्श है। रासलीला और ब्रज की लीलाओं में राधा का स्थान सर्वोपरि है—यहाँ तक कि श्रीकृष्ण भी उनके प्रेम और समर्पण को अपनी शक्ति मानते हैं। गौड़ीय वैष्णव परंपरा में राधा को ‘कृष्ण-प्राणाधिका’ कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे स्वयं कृष्ण से भी अधिक उनके हृदय में प्रतिष्ठित हैं. उनका स्वरूप कोमलता और सौंदर्य का अद्भुत संगम है। घाघरा-चोली, घूंघट, कमल-सा मुखमंडल और फूलों की मालाएँ उनके रूप को और भी दिव्य बनाती हैं। उनके साथ हमेशा श्रीकृष्ण का नाम जुड़ा रहता है—जहाँ कृष्ण हैं, वहाँ राधा हैं और जहाँ राधा हैं, वहाँ कृष्ण. राधाष्टमी, जो भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को मनाई जाती है, उनकी मुख्य पूजा तिथि है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और राधा-कृष्ण की पूजा करके शुद्ध भक्ति, सौभाग्य और शांति की प्रार्थना करते हैं। बरसाना और वृन्दावन में यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त लठमार होली भी राधा-रानी की लीला से जुड़ा हुआ उत्सव है, जिसमें बरसाना और नंदगाँव की परंपराएँ विश्वभर में प्रसिद्ध हैं. धार्मिक ग्रंथों जैसे ब्रह्मवैवर्त पुराण, गीत गोविन्द और भागवत सम्प्रदाय के ग्रंथों में राधा की महिमा का विशेष वर्णन मिलता है। भक्तजन उन्हें केवल कृष्ण की प्रेयसी के रूप में नहीं, बल्कि भक्ति, करुणा और दिव्य प्रेम की परिपूर्ण देवी के रूप में पूजते हैं।